दिन बनाम रात
दिन बनाम रात
दिन बनाम रात
एक दूजे की पहचान
पूरक एक दूजे के
अधूरे एक दूजे के बिन।
एक आता तो दूजा जाता
दूजा आता तो पहला जाता
प्रकृति के एक अद्भुत चक्र में
इंसान अपना जीवन बिताता।
दिन नवजीवन की आस जगाता
रात सुकून की नींद सुलाता
फिर सुबह एक नई शुरुआत
शाम को फिर आराम की आस।
दिन बनाम रात
सोचो अगर ना होते
कब हम जागते ?
कब हम सोते?