STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

4  

Neerja Sharma

Abstract

दिन बनाम रात

दिन बनाम रात

1 min
179

 दिन बनाम रात

 एक दूजे की पहचान 

 पूरक एक दूजे के

 अधूरे एक दूजे के बिन।


एक आता तो दूजा जाता

दूजा आता तो पहला जाता 

प्रकृति के एक अद्भुत चक्र में 

इंसान अपना जीवन बिताता।


दिन नवजीवन की आस जगाता

रात सुकून की नींद सुलाता 

फिर सुबह एक नई शुरुआत

 शाम को फिर आराम की आस।


दिन बनाम रात

सोचो अगर ना होते

कब हम जागते ?

कब हम सोते?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract