दिल
दिल
कहीं पर खो गया है, कहीं पर टूटा है
कभी यह मान जाता है, तो कभी रूठा है,
कहीं पकड़ा गया है एक सच की खातिर
चुरा कर जिंदगियॉं भी कभी यह छूटा है।
कभी है कोमल यह पंखुड़ी गुुलाब की
तो कभी यह पलास है,
कोई तो बताए यह दिल बला क्या है
मुझे उसकी तलाश है।
सुना है कि एक पत्थर है यह
तो कई बार फिर क्यों रोया है,
इसके हर एक ऑंसू को लोगों ने
अपनी गजलों में पिरोया है।
फरयाद हमेशा सुनता है यह,
गिला-शिकवा भी इसी से,
हुश्न की अदाओं में यह,
इश्क की कहानी भी इसी से।
कोई शीशा है गर कहता,
तो वक्त के थपेड़ों को ये न सहता,
खाकर जमाने की ठोकरें
हर बार क्या यह उसी रूप में रहता।
जड़ इसे मैं मानता नहीं,
किसे कहते हैं धड़कन क्या ये जानता नहीं?
इसकी हर एक धड़कन से दुनियां जवां है,
वर्ना इस वीराने में जिंदगी कहॉं है।
चाल इसकी गर हो जाए धीमी
तो चिंघाड़ती है धरती, घूमने लगती है दिशाऐं,
बंद कर दे गर ये चलना
तो खो जाती है सृष्टि अंधकार मैं
और रोने लगती हैं फिजाऐं।
चेतन अगर ये होता,
लूट-पाट और धर्म-जाति पर
हो रहे व्यापार को देख कर
क्या यह इसी तरह सोता,
दबता चला जा रहा है
जो लाशों के ढेर के नीचे
पसीजता नहीं क्या यह,
जो खून गर कहीं एक भी होता ?
दोस्तो, शीशा नहीं, पत्थर नहीं,
यह जड़ भी नहीं, चेतन भी नहीं
तो भला क्या है ?
हो सके तो मुझे बताना, आखिर ये दिल बला क्या है।
