दिल की बस्ती।
दिल की बस्ती।
दोस्तों क्यों आख़िर बढ़ रहा अत्याचार,
इंसानियत हमें कैसे रही है न धिक्कार।
माना रावण ने सीता हरण था ना किया,
दशहरे पर करते हर साल रावण दहन।
वर्तमान में इस समय सीता माँ का हरण,
अब कलयुग के राम-लक्ष्मण ही कर रहे।
प्यार भी बन गया है ना आज व्यापार,
बस हवस और वासनाओं का बाज़ार।
दिल की बस्ती में क्या सामान खरीदोगे,
फूलों का रस पी पत्थरों जैसे दिल होंगे।
जीवन के अँधेरों में हिम्मत नहीं हारना,
याद रखें हर रात के बाद सूर्योदय होगा।
धन-दौलत एशो-आराम शोहरत के लिए,
बिक रहा कौड़ी के भाव इंसानों का ईमान।