दिल के पास रहते हो तुम
दिल के पास रहते हो तुम
दिल के पास रहते हो तुम
विरह तो हुआ ही कहां है?
वह कुंज गलियां, वह कदंब के पेड़।
वह बंसी की तान, अधरों पर मधुर मुस्कान।
लोग कहते हैं कि चले गए कान्हा मथुरा में
लेकिन
मैं तो जानती हूं कि मुझ में ही कहीं बस गए हो तुम।
राधा खुद कृष्ण रूप हो गई है।
बंसी की धुन में खो गई है।
नजरों को कुछ और दिखता है कहां है?
कान्हा राधा की नजरों में बस गए हो तुम।
विरह की अग्नि उन्हें ही तो तड़पाएगी,
जिनका विरह हुआ होगा,
अरे उद्धव ज्ञान की जरूरत ही क्या है?
प्रेम की जगह तो सदा से ही ज्ञान के ऊपर रही है।
प्रेम से देखोगे तो तुम्हें भी दिखेंगे।
कान्हा यूं ही कहीं पेड़ों के पीछे छुपते होंगे।
कान लगाकर सुनो गाना वही होंगे जहां बंसी के मधुर स्वर बजते होंगे।
कान्हा राधा से दूर नहीं है।
मिलना चाहते हो अगर कान्हा से तो जहां राधा है कान्हा भी वहीं है।
