दिल चाहता
दिल चाहता
न जानती हूँ उनका नाम
न कोई अता-पता
सिर्फ एक बार जो देखा था उनको
अब हर बार देखने को दिल चाहता।
घर से निकलने के बहाने ढूंढती
उनकी एक झलक पाने के खातिर
रोज उस समुद्र किनारे उनका इंतजार करती
अब हर रोज उनसे मिलने को दिल करता।
आँखों में इंतजार
हल्की सी मुस्कान
खयालों में डूबी डूबी सी मैं
बस यही सोचती कि कब वो आऐंगे।
जब उन्हें आते देखती तो
मेरा चेहरा खुशी से खिल उठता
पता नहीं उन्हें देखकर मुझे क्या हो जाता
उनके पास जाकर बैठने को दिल करता।
जब वो नहीं आते तो
मैं मायूस सी हो जाती
मगर खुद को समझाती कि
आज नहीं कल आऐंगे।
पता नहीं क्यों मैं उनका रोज इंतजार करती
उन्हें देखने के लिए आँखें मेरी तरसती
उनसे बात करने कि हिम्मत तो जता नहीं पाती
मगर फिर भी उन्हें जानने को जी करता।
वो कौन है ? कहाँ से है ?
वहाँ रोज क्यों आते है ?
आज आऐंगे भी या नहीं ?
मुझे कुछ भी नहीं है पता
मगर फिर भी उनका
इंतजार करने को दिल चाहता।