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Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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दिल चाहता है

दिल चाहता है

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दिल चाहता है

छू लूं तुझे

पढ़ लूं तुझे

और जान लूं मैं

तेरी भी ख्वाहिशें

तेरी भी हसरतें..


भूल से

कहीं ऐसा न हो

बसा हो कोई और

तेरी नजरों में

तेरे दिल में..


और तू

मजबूर होकर

इस समाज से डर कर

अपनी मोहब्बत को

दफन कर

बन जाए मेरी


पूरी जिंदगी सिसकने को

तड़पने को 

और आंसू बहाने को।


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