दीपक
दीपक
काश की मैं दीपक बन जाऊँ,
खुद जलकर भी प्रकाश फैलाऊँ,
जीवन का तम दूर हो सके
खुद को इसके लिए भले मिटाऊँ।
जैसे दीपक के तले रहे अँधेरा,
फिर भी फैलाता है चारों तरफ उजियारा,
वैसे ही भले जीवन में गम हो कितने,
फैलाऊँ ख़ुशियाँ मिट जाए दुख सारा।
मंदिर में जलकर पूजा का दीपक सम,
श्रद्धा भक्ति का भाव सदा मैं जगाऊँ।
गरीब की झोंपड़ी में जलकर सदा,
उम्मीद की किरण मैं सदा ही दिखाऊँ।
अंतर्मन में ज्ञान का दीप जलाकर,
हिय से बुरे विचारों को सदा मिटाऊँ।
अज्ञानता के गहन तिमिर मिटाकर सदा,
ज्ञान का प्रकाश मैं सदा ही फैलाऊँ।