दीप बन चमको
दीप बन चमको


नैतिकता का पाठ पढ़ाते
हर घर में पालक सबके
मृदु-माटी के भांड सरीखे
ढल जाते बालक सबके।
मात-पिता की छत्र-छांव में
पलता है प्यारा शैशव
उनके ही आशीषों से तो
मिले खुशी और यश-वैभव।
अनुकरण और अनुशासन ही
बच्चों की असली पहचान
मिले प्रेरणा सदा बड़ों से
उनसे परिवार की शान।
नीति रीति के सारे ही गुर
मिलें स्वजन समुदाय से
सदाचार का पाठ सीख लो
प्रफुल्लित हो मन-काय से।
सभ्य-संस्कृति, संस्कार का
दामन कभी ना छोड़ो तुम
स्वयं दीप बन पथ पर चमको
कर दो जग को रोशन तुम।