ध्यान
ध्यान
बरसों बरस बीत गए नहीं भंग हुआ मेरा ध्यान
नित कार्य में लीन जैसे ली हो कोई समाधि
वहां पहाड़ों पर बैठकर ऋषि मुनि करते हे ध्यान
वैसे ही में रम के अपने संसार में नित्य ही करूँ में ध्यान
मोह भंग नहीं होता है, अनवरत जीवन चक्र ये चलता हे।
जीवन की ऊहापोह से बचने का सरल तरीक़ा हे।
नित्य लीन रहूँ में अपने में
अपने से अपने की पहचान कराना ही है सत्य ज्ञान।
ध्यान समाधि का असली अर्थ हे आत्मज्ञान
जब आत्मज्ञान हो जाएगा तो
मनुष्य का सारा अंधकार मिटाएगा
नहीं रहेगा पाप धरा पर
जीवन फिर से लहरायेगा
छायेंगी वसुधा पर फिर से हरियाली
चहूं ओर फैलेगी हरियाली
जैसे मीरा ने था कृष्ण का ध्यान धरा
बुद्ध भी भटके वन जंगल, जैसा था गौरा ने ध्यान किया उस विष हलदर का
वैसे ही मनुष्य को ध्यान करना होगा
छोड़ के अपनी निजता को समाधि रत होना ही पड़ेगा
तभी कटेंगे कष्ट सभी
मिलेगा सच्चा आत्मबोध तभी ॥
