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धूप छाँव

धूप छाँव

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जीवन में जैसे धूप -छाँव,

वैसे ही है सुख-दुख के भाव।

एक आता एक जाता है।

कभी हँसाता कभी रुलाता है।


जब जेठ की हो दोपहरी,

हम छाँव ढूंढते फिरते हैं।

जब माघ की शीत हो गहरी,

हम धूप के लिए तरसते हैं।


एक दूजे के बिन

दोनों निराधार है

धूप है तभी मोल है छाँव का।

दुख है तभी मोल है..

ख़ुशियों के भाव का।



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