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घर

घर

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घर सिर्फ घर होता है,

झोपड़ी या महल नहीं।

बहुत कुछ छुपा है,

ऊंची दीवारों के पीछे।


महलों में रहना भी सरल नहीं।

घर वो है जहां...

पिता का थोड़ा शासन हो,

माँ के पकवान मनभावन हो,

मंदिर में सुबह शाम

प्रज्वलित दिया हो।

घर का हर कोना प्रेम से,

सुसज्जित किया हो।


सब के विचार भले ही

भिन्न हो,

बस नियत नेक हो।

सुख में और दुख में,

सब मिलकर एक हो।


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