मैं पुरुष हूं
मैं पुरुष हूं
सोचा था उलझनें सुलझा लूं,
फिर थोड़ा सुस्ता लूं।
उलझनें कभी खत्म ना हुई,
तो उलझनों में भी मुस्कुरा लिया।।
सोचा था जिम्मेदारियां निभा लूं,
फिर थोड़ा सुस्ता लूं।
जिम्मेदारियां कभी खत्म ना हुई,
निभाते- निभाते ही मुस्कुरा लिया।।
कभी दुःख में दो आंसू बहा लूं,
संकट के काले बादल घिरे, तो नजरें चुरा लूं।
पर अपनों का हौसला था "मैं",
अंदर से रोया फिर भी मुस्कुरा दिया।।
'पुरुष हूं मैं'
हर मुश्किल हंसते-हंसते सुलझा लूं,
दुख में भी आंसू छुपा लूं।
चलता रहूं हमेशा कभी ना थकूं,
मुझे ऐसा ही कठोर बना दिया।।
पुरुष हूं मैं'
कोई पत्थर तो नहीं,
चोट मुझे भी लगती है,
तो क्यों ना दिखा दूं।
कभी थक कर बैठ जाऊं,
दुख में दो आंसू गिरा दूं।
अपनी परेशानियां भी बता दूं,
हल्का महसूस करूं खुद को,
मुझे भी हक दो कि महसूस करूं,
जीवन मैंने भी जिया।
जीवन मैंने भी जिया।।