धुँआ सा है!
धुँआ सा है!
इन सर्द राहों में देखो तो फ़ैला हुआ कुंहासा है,
मानो तो बुझती हुई तपिश का एक धुँआ सा है !
गर दिखे इन सर्दियों में अब्र पर बादल कभी तो,
तो समझो कोई ऊपर बैठ के हो रहा रुआँसा है !
ज़िन्दगी की अँधियारी यादों का अक़्स दिखता है,
आज ज़िन्दगी के सामने हुआ ये एक ख़ुलासा है !
ज़िन्दगी में चलता रहता ग़म और ख़ुशी का दौर,
न जाने कौन कब आये कि हर मंज़र जुआ सा है !
खफ़ा हुए हैं अपने भी और, परायों का क्या कहें,
कि ऐसे आलम में ये इंसान हो रहा बदगुमाँ सा है !
समेटने की कोशिश की है मैंने हर बीते मंज़र को,
हो ना पाया ये कि हर मंज़र ज़रा यहाँ-वहाँ सा है !
