धरती
धरती
पेड़ सदा ही है रहा, धरती का श्रृंगार।
वृक्षों से सबको मिले, जीवन का आधार।
धरती देती जीव को, खान पान अरु वास।
इसको दूषित कर सुनो, मत करना उपहास।
प्रथम पूज्य माता यही, कर लो तुम सम्मान।
इसकी सुरक्षा तुम करो, अपनी संपत्ति मान।
रोको दोहन खनिज का, मात्रा इसकी अल्प।
कर लोगे उपभोग जो, कौन करेगा शिल्प।
बढ़ता दूषण कह रहा, हो जाओ गंभीर।
समय अभी है रोक लो, बिगड़ रहा तासीर।
कटते जंगल रोज हैं, बिगड़े प्रकृति तंत्र।
करते दूषित भूमि को, मानव निर्मित यंत्र।
वाहन तेजी से बढ़े, करता दूषित वायु।
साँस शुद्ध मिलती नहीं, होती हैं कम आयु।
बढ़ता धुंध देख लगे, बुरा धरा का हाल।
पेड़ काट खुद ही रचे, मानव अपना काल।
जल थल सब दूषित हुए, बढ़ते जाते रोग।
दूभर हैं जीना हुआ, तड़प रहे हैं लोग।
विनती मेरी मान के, दो धरती को साज।
लगा पेड़ महकाइये, प्रकृति को फिर आज।
