धरती
धरती
कुछ खफा खफा सी लगती है
मानव के अत्याचारो से
जो गुस्से से डोल रही अपनी धरती।
ना जन्म भूमि के ना कर्म भूमि के ये
मानव थोड़ा बेईमान है।
खुद की जरूरत के खातिर
करते धरती का तिरस्कार है।
ये धरती तू जननी है।
हम तेरे है बालक।
जो भूल हुई तो क्षमा करो।
करो प्यार हमे अब वापसी
बालक तेरे है डरे हुए
ना जाने कब क्या होगा।
कह गए बड़े बुजुर्ग यहाँ
माता ममता की रूप है।
पूत कपूत सुने है ।
पर ना माता सुनी कुमाता
ऐ धरती तू है जननी।
जो भूल हुई तो क्षमा करो
