धरती माँ की पालना
धरती माँ की पालना
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धरती माँ को छलनी करके, घायल करता जाए
अपने ही पाप कर्मों पर, मानव कितना इठलाए
स्वार्थ की सीमा तोड़कर, हो गया कितना मैला
जीवन दायिनी से हमने, व्यवहार किया सौतेला
तोड़े पहाड़ काटे पेड़, रुख नदियों का भी मोड़ा
पीड़ादायक ये आधात, मानव सोच लेता थोड़ा
प्रकृति को सताकर जब, करता कोई अविष्कार
मच उठता पांचों तत्वों के, अन्तर्मन में हाहाकार
बिना किसी कारण ये, प्रकृति भी उग्र नहीं होती
बदला तभी लेती है, जब वो खून का आंसू रोती
सोचो कोई तुम्हारा भी, यदि ऐसा हाल बनाएगा
श्वांस लेना तुम्हारे लिए, अति कठिन हो जाएगा
सुखदायिनी धरती माँ को, अब तो छोड़ सताना
इसको नोच नोचकर कर, तूछोड़ दे धन कमाना
धरती माँ को दुख देकर, क्या तुझे मिल जाएगा
जितना इसे सताएगा, दुख भी उतना ही पाएगा
धरती का पालन करने की, अब आई तेरी बारी
बंजर जमीन पर बिछा दे, तूहरी भरी फुलवारी
धरती माँ की जितनी, तूपालना करता जाएगा
बदले में हजार गुणा सुख, धरती माँ से पाएगा।