धरती के तारे
धरती के तारे
शाम ढली, रात हुई क्षितिज में,
आकाश में तारों की महफ़िल सजी,
धरती के तारे जुगनू भी टिमटिमाये,
पर, ऊँचे आकाश को न छू पाए.
ऊँची थी महफ़िल, ऊँची थी मंज़िल,
अनजानी राहों पर भटकते रहे,
धरती के जुगनू टिमटिमाते रहे,
नयनों में ऊँचे स्वप्न सजाते रहे.
खोजनी था राह, पानी थी मंज़िल,
पहुँचना था सितारों की महफ़िल में,
सच करने थे अपने ऊँचे-ऊँचे सपने,
पर, आकाश की ऊँचाइयों को छू न पाए.
तारे भी कुछ थे शैतान, थोड़े से थे महान,
जुगनू बड़े थे नादान, थोड़े से थे अनजान.
चाहते थे तारों को छूना,आकाश को पाना,
तारों ने की जुगनुओं की कोशिश नाकाम.
तारों ने जुगनुओं को कुछ ऐसे भरमाया,
अपनी रोशनी को भी कुछ ऐसे चमकाया.
नदी के आईने में खुद को कुछ यूँ दिखाया,
कि भ्रमित जुगनुओं को और भी उलझाया.
अपनी राह भूले, जुगनू अब भटकने लगे,
नदी में प्रतिबिम्ब को आकाश समझने लगे,
तारों ने भी पूरी रात उन्हें खूब छकाया,
अपनी परछाइयाँ दिखा-दिखा, पास बुलाया.
भोले जुगनू तारों की चाल समझ न पाए,
अपनी मंज़िल से भटक कर, वहीं चले आये,
तब से धरती पर, झाड़ियों में ही चमकते हैं,
नदी में तारों को छूने की कोशिश करते हैं.
