धर्म............ ।
धर्म............ ।
मै हूँ पंछी उड़ जाऊँगा .....
मिटी का लाल रह जाऊँगा,
क्यों होते हो गुमराह ,
काँटे बहुत है तेरे सीधे रास्ते मे,
कहीं कोई मिले तो अपना रख,
दूसरों को देख पराया मत चख,
चल मेरा साथी उस पार ,
बैठकर मेरे से अलग मत हो जाना सवार,
देख मैने कविता लिखी ,
स्वाद तो चख कितनी तीखी ,
कभी गम नहीं दुखी का ,
यार दिलदार है बहुत सुखी है,
कविता मे है कौनसी शर्म,
मेरे नाम के ही आगे धर्म ..... ।