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Dharm Veer Raika

Abstract

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Dharm Veer Raika

Abstract

धर्म............ ।

धर्म............ ।

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मै हूँ पंछी उड़ जाऊँगा ..... 

मिटी का लाल रह जाऊँगा, 

क्यों होते हो गुमराह , 

काँटे बहुत है तेरे सीधे रास्ते मे, 

कहीं कोई मिले तो अपना रख, 

दूसरों को देख पराया मत चख, 

चल मेरा साथी उस पार , 

बैठकर मेरे से अलग मत हो जाना सवार, 

देख मैने कविता लिखी , 

स्वाद तो चख कितनी तीखी , 

कभी गम नहीं दुखी का , 

यार दिलदार है बहुत सुखी है, 

कविता मे है कौनसी शर्म, 

मेरे नाम के ही आगे धर्म ..... ।



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