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Dr. Swati Rani

Abstract

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Dr. Swati Rani

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दहेज एक अभिशाप

दहेज एक अभिशाप

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दहेज़ प्रथा है विष ऐसा,

धीमे धीमे सारे संसार को चुसा

नवयौवनाऐं है इसका शिकार,

जलती सुलगती रहती बारंबार


ये कैसी इज्जत है वर पक्ष वालों की,

जिनकी उपहार है शान वधू पक्ष वालों की 

जो दुल्हन जितना लाती उतना सम्मान पाती,

ससुराल पक्ष में बनती वो दिये की बाती 


गुणवत्ता से ना तौली जाती वो अबोध नारी,

सुने बाप भाई की गाली वो स्तब्ध खड़ी बेचारी

दहेज वो दीमक है, जिसने संसार को खोखला किया,

इसका मर्म उससे पूछो जिसकी जमीन गयी सो गयी

बिटिया के अर्थी को भी कंधा दिया 


निबंध लिखते जो दहेज पर कहते प्रथा मिटाएंगे,

सुना है वो आ. ए. एस, डाक्टर 50 लाख गिनवाएंगें 

जिस संसार में जिगर के टुकड़े का मोल है करोड़ों,

बेटी जन्म लेने पर वहाँ मातम कैसे ना हो बोलो 


भ्रूण हत्या और गर्भपात इस दहेज के उपकार हैं,

कैसे रुकेंगे बलात्कार भी बोलो,

जब बेटी गर्भ में माता को अस्वीकार है 

लोगों की जागरूकता और प्रवचन ताक पर जाती है,

जब खुद के बेटे की दहेज गिनने की बारी आती है।


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