दगा
दगा
लड़ाई लड़ता रहा जग से जिसके लिए !
दे गया वह दगा चंद सिक्कों के लिए!
हो गया वह पराया एक पल न लगा,
चुभन दिल में हुई उसे पता न लगा!
वफा की राह मैं क्यों बेवफाई मिली?
अलग हो रही लहर सागर में समाई मिली!
था, सच्चा मेरा प्रेम वो समझ न सकी
दगा दे गयी मुझे क्यों मेरी हो न सकी?
मैं बन बादल यूँ बरसता रहा!
बिजली का कहर सहता रहा!
मौन मुखरित जब होने लगा,
ये आसमां भी देखो रोने लगा!
मिल गया था दगा प्यार की राह में!
आँख मूदते ही पाया उसकी बांह में!
कैसा आघात दिल पर लगा था?
खंजर सा कोई तन पर चुभा था!
बेबस सा एक भ्रमर मैं लग रहा था!
मुरझाई कलि पर जो मंडरा रहा था!
था सच्चा मेरा प्रेम ,ये मुझको पता था
दगा को भी दगा क्यों न मान रहा था!
एक चिंगारी लगी धुँआ-धुँआ हुआ!
दिल मेरा अब बेबस बेहया हुआ!
दगा उसने दिया ,मैं दागी बना
सारी महफिल में पाप का भागी बना!
सो गए सारे अरमान खालीपन रह गया!
मैं बेसहारा, बेबस, तन्हा रह गया
टूट गयी सारी आस निराशा बची!
बस इतनी सी किस्मत ने प्रेम कहानी रची!