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Jayantee Khare

Abstract

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Jayantee Khare

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देनी होगी अग्निपरीक्षा

देनी होगी अग्निपरीक्षा

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पूछा किसने क्या तेरी इच्छा

जाना भी नहीं है परिस्थितियों को

क्या देखी तुमने उसकी तितिक्षा

क्या है व्यथा 

क्या है कथा

प्रश्न उठाये जब दुनिया

देनी होगी अग्निपरीक्षा


स्त्री पवित्रता की परीक्षा

किसने बनाई है यह प्रथा

हर बात वृथा हर रस्म वृथा

तुमसे होता है कुल का मान

किंतु कुलदीपक का चलता नाम 

कबतक चलना है अग्निपथ पर

देनी होगी अग्निपरीक्षा


व्यर्थ है शिक्षा 

व्यर्थ है दीक्षा

पृरुषप्रधान जग की सब इच्छा

कुंठित होती हर आकांक्षा

क्या रखे वो महत्वकांक्षा

जब कर न सके वह स्वरक्षा

देनी होगी अग्निपरीक्षा


क्या चरित्र स्त्री का है बस

पुरुष जाति का धर्म नहीं कोई

कोई पुरुष से यह पूछे क्या

दे सकता है वह कोई परीक्षा ?

कोई वासना वश हो जाये जब

हो जाती है वह विवश

देनी होगी अग्निपरीक्षा


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