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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Fantasy

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract Fantasy

देखा सब देखा

देखा सब देखा

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देखा समय को

जब भी देखा 

अस्त व्यस्त और 

मनमौजी देखा।


कभी अचानक पंख लगाते देखा

देहरी पर से उड़ते देखा

कभी समय को 

ठिठके देखा 


चेहरों पर उतरते देखा

कुछ दुपहरी उबासियाँ लेते

कुछ चौबारों पर फिरते देखा

कहीं फूंकनी से धुआं फूंकते 

बुझता शोला भड़काते देखा


रोटी आंगन और चौराहा

पल्लू साफा अचकन सा देखा

देखा देखा

जंतर मंतर सा भी देखा

देखा मस्त कलंदर सा भी देखा

रुकता हो या उड़ता हो वो

उसको बस रंग बदलते देखा।


देखा समय को

जब भी देखा 

अस्त व्यस्त और 

मनमौजी देखा।

क्रमशः


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