STORYMIRROR

Harish Bhatt

Classics

4  

Harish Bhatt

Classics

डोर

डोर

1 min
259

बिखरे मोती, टूट गई डोर

गांठ लगाओ या न लगाओ


अपनत्व तो हो चुका ध्वस्त.

कैसी लगी संतुष्टि को आग,


न बुझती है, ना दहकती है.

बस जल रहा है गांव- मौहल्ला


बचपन के दोस्त, मां का प्यार

छोड दिया बस नाम के लिए


लौटना भी कैसे, सूख गई माटी

रिश्ते पनपते नहीं बंजर जमीं में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics