डेली सोप
डेली सोप
डेली सोप के सीरियल भी
क्या - क्या गजब दिखाते हैं
बिना कहानी के भी देखो
सालों - साल चलाते हैं
रिश्तों के ताना- बाना के नाम पर
जाने क्या - क्या दिखाते हैं
साजिशों से भरे इनके हर परिवार
जाने ये रिश्ते क्या कहलाते हैं
इतना सीधा कहानी इनकी
कहीं से भी देखो समझ आ जाती है
दिमाग को कष्ट ना दो बस
तो हर बात गले उतर जाती है
गरीब से गरीब पात्र भी इनका
सजा सँवरा नजर आता है
सोना हो या बीमार भी हो
इनका मेकअप नहीं उतर पाता है
सारे मर्द भी उलझे घर की साजिशों में
काम पर बाहर बस कभी - कभी जाते है
जाने फिर भी कैसे इनके व्यापार चलते
जाने कैसे इनके पास इतना पैसे आते है
इंस्पेक्टर भी हो तो इनकी कहानियों में
साहेब बस घर के केस ही सुलझाते हैं
बाहर कहीं जाना नहीं होता पर
सूट - बूट में ही हरदम नजर आते हैं
पीढ़ियों को इन कहानियों में
एक साथ दिखाते हैं
पर हम नादान बालक कभी -कभी
दादी-पोती में फर्क नहीं कर पाते हैं
शादियां तो इन सबमें ये
थोक के भाव कराते हैं
ट्विस्ट लाना हो कहानी में तो
पुराने प्यार की "निशानी" ले आते हैं
ताज़्जुब होता है कि इनके लेखक
क्या सच में नया कुछ नहीं लिख पाते हैं
या दर्शक अपनी चेतना शून्य करके
बस देखतें है और नया कुछ नहीं चाहते हैं
क्या जरूरी है बेसिर-पैर की सीरियल को
सालों- साल रगड़ -रगड़ कर चलाना
क्या जरूरी है ऐसे वाहियात के लिए
लेखकों के नाम पर बट्टा लगाना।
