day-17 जीवन का रहस्य (मर्म)
day-17 जीवन का रहस्य (मर्म)
कुछ सुलझे अनसुलझे रहस्य जैसी जिंदगी
जिंदगी छोटी सी रिश्तों की बँधी डोरी है भागता घोड़ों की तरह बचपन,
जवानी यू ही निकल जाएगी, कछुए की चाल की तरह बुढापे में चलती नजर आएगी
जिंदगी एक सुहाने भोर की तरह जो नयी सुबह नयी आशा लेकर आए और कई रंग जिंदगी में भर आए
जिंदगी खिलते गुलाब की तरह खिल जाए तो पूरी बगिया महक जाए
कभी गिराती निर्ममता से कभी थपकियाँ देकर समझाती
कभी सख्त पिता सी माँ की ममता बन जाती
निराश मन को आशा का दामन थमाते
जिंदगी एक सुरमई शाम की तरह रागों को अपने ही अंदर छेड़ जाए
जिंदगी बहते दरिया की तरह खुशी हो या गम बस चलती जाए
जिंदगी के सफर में हमसे न जाने कितने टकराये और कुछ छू कर निकल जायेगे, अपने बुहत याद आये कुछ रहेगे याद कुछ भूल जायेगे
जिंदगी एक किताब की तरह जिसे पढने पर कुछ नया सीखा जाए
जिंदगी एक मासूम बच्चे की तरह जो पल भर रोये दूसरे पल हँसाया करे
जिंदगी रात के खिलते चाँद की तरह जो हर अंधेरे को मिटा चाँदनी फैलाए
जिंदगी बहती हवा की तरह जो हर बाधा को दूर कर समय के साथ बहना सिखाए
जमीन जायदाद, धन,प्रतिष्ठा सब झूठी है, बचपन की वो बिसरी यादे
माँ का प्यार दुलार पिता जो रखता हर जरूरत का ध्यान, नहीं लगता किसी चीज़ का अभाव
जिंदगी ईश्वर रूपी वरदान जो वास्तविकता का बोध कराती
प्रेम रूप वसुधा का कहीं क्रुद्ध रूप दिखलाती, फलीभूत होती कभी वरदान कभी अभिशाप बन जाती
उन्नत मन को प्रकृति का मर्म समझाती
प्रकृति देती मानव को संदेश कृतज्ञ बनो यह बात बताती
छोटी सी जिंदगी इसको जी लो तू क्या पता किस मोड़ पर रुक जाएगी
बेकार है उलझने आजाद जी ले तू क्या पता किस मोड़ पर थम जाएगी
मानव जीवन का यही रहस्य (मर्म) बताती।