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Ragini Sinha

Drama Inspirational

4.6  

Ragini Sinha

Drama Inspirational

दौर

दौर

1 min
246


आज खड़ी हूँ जिस दहलीज पर मैं,

तू भी कभी खड़ी थी न माँ।

कितना कुछ कह सुुनाती तुझे

फिर भी तेरे होठों पर मुस्कान

तैर जाती न माँ।


अपनी गीली आँखों को

चुपके से पोंछकर

एक उदास हँसी हँसती हूँ

तो अब मैं तेरे दर्द को

समझने लगी हूँ माँ।


दिन भर क्या करती हो

रसोई मेंं तुम,

रट-रट कर तेरे आगे-पीछे

घूम-घूम कर परेशान करती थी मााँ।


तेरी उलझी लटटों को सुलझाकर

तेरे बाल सम्भालती थी माँ

पर मन ही मन बड़बड़ाती मैं

जाने क्यों अपना ख्याल

नहीं रखती तू माँ।


सजना सँवरना तो दूर

कभी गीले बालों को सूखने भी न दिया।

आज जब गीले बालो में रसोई

में घुसती हूँ, बिल्कुल मैं

तुुुझ जैसी ही लगती हूँ मााँ।


सबका ख्याल रखना आता तुुझे

अपना ख्याल क्यों नहीं रखती मााँ

कल एक दौर था जब तेरी बेटी

तुझे जीना सिखाती थी

हँसना बोलना सिखाती थी।


तेरे हर गम को

दूर करने की कोशिश करती

आज एक दौर है

जब मेरी बेटी तेरी बेटी को जीना सिखाती मााँ

तेरी बेटी को भी मेरी बेटी

रोते-रोते हँसना सिखाती माँ।


माँ देखो न कल और आज का दौर

मैं बिल्कुल तुझ जैसी ही हूँ माँँ।।



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