दौलत
दौलत


इंसान पे तो सिर्फ पैसो का भूत सवार है,
अपनों से नफ़रत , दौलत से प्यार है ।
खत्म हो गई इंंसानियत
अब चैन नहीं, नींद भी बेकार है
इंसान को तो सिर्फ दौलत से प्यार है ।
इतना अंंधा हो गया इंसान पैसों कि मोह में
बड़़े़ बुढो कि आदर छोड़कर,
लुटे पड़े हैं झूठे संस्कार में
इंसान पे तो सिर्फ पैसों का भूत सवार हैं,
अपनों से नफ़रत , दौलत से प्यार है।
कहांं बाकी रह गई अब खून कि कीमत
हर तरफ बस पैसोंं का मोह माया जाल है,
इंसान पे तो सिर्फ पैसों का भूत सवार है
अपनों से नफ़रत , दौलत से प्यार है।
जिंंदगी क्या थी, क्या बन कर रह गई,
जो दोस्त हुआ करते थे
वो दुश्मन बन कर रह गए
दिलों में अब गुब्बार ही गुब्बार है
इंसान पे तो सिर्फ पैसों का भूत सवार है,
अपनों से नफ़रत , दौलत से प्यार है।