दास्ताँ ए जिंदगी
दास्ताँ ए जिंदगी
क्या लिखें दास्ताँ ए जिंदगी,
की अब तुझसे मिलने में रहा
वक्त नहीं !
ऐसे ही नहीं चुनी है खामोशी,
कि यहाँ अलफाजों का होता
मोल नहीं !
अलफाजों की तरह सजा दे कवि,
की पास लफ्ज हो के चुप रहना
ठीक नहीं !
अल्फाज इकट्ठा करने में लगेगी,
की जिंदगी को लफ्जों से समेटना
मजाक नहीं !