दादी ने ईंट का टुकड़ा पकड़ाया था
दादी ने ईंट का टुकड़ा पकड़ाया था
अतीत के झरोखे से झांका
तो कुछ पल फ़्लैश बैक
होकर नजर आए,
जिसमें दादी ने ...
अपनी पोती को,
ईंट का टुकड़ा पकड़ाया था!
मिट्टी के आंगन पर,
कुछ आड़ा तिरछा,
लिखना सिखाया था ...
आज वही पोती ..
अपनी लेखनी से,
समाचार के दफ़्तर
में स्तम्भ लिखती है
लेख लिखती है
वह एक जागरूक
महिला दिखती है ..
पर कभी दादी को
भूल न पाती है ..
क्योंकि अगर दादी
ईंट का टुकड़ा न पकड़ाती,
स्कूल न भेजती ..
तो शायद वह ईंट के
बोझ को सिर पर ढोती
और वह माँ से महरूम
बच्ची आजीवन रोती
पर अब ये पोती ..
दादी के ऋण को चुकाने,
अनाथालय जाकर,
कई घण्टे बच्चों को
पढ़ाती है ..