दादी माँ मेरा बचपन
दादी माँ मेरा बचपन
सुबह उठते ही दादी मुझे अपने पास बुलाती थी
सबके पैर छूना और राम-राम कहना सिखाती थी
फिर तैयार हो कर मै स्कूल जाता मेरे पिछे आती थी
सबसे प्रेम और सम्मान का पाठ पढाती थी
छुट्टी के बाद जब मै घर आया करता था
दरवाजे पर ही दादी को खडा पाया करता था
दादी ने पूछा आज मास्टर जी ने क्या सिखाया?
मैंने भी इसके जवाब मे दादी का चित्र बनाया
शाम को घर के बाहर मेरी दादी मॉ बैठा करती थी
थोड़ा मैं उससे खेला करता, थोड़ा वो मुझसे खेला करती थी
रात को जब मै खाना खाता वो मेरे पास बैठ जाती थी
मुझे भी खाना खिलाती और खुद भी मेरे साथ खाती थी
सोने के लिये जब मैं बिस्तर पे जाता मेरे सिरहाने बैठ जाती थी
राजा-रानी, चोर-पुलिस, शेर-जंगल की कहानी सुनाया करती थी
जब तक मै ना सोता खुद जागती रहती थी
मेरे सोने के बाद खुद भी सो जाया करती थी
जैसे ही मेरी आँख खुले रात को दादी की भी नींद खराब होती थी
इसी तरह रात भर वो मुझे सम्भालती और खुद सो नही पाती थी
छोड़ के गाँव को जब मै शहर में आया
दादी माँ को वही गाँव में छोड़ आया
आज बरसों बाद किसी किताबों के ढेर में
एक पुरानी किताब को हाथ लगाया
खोल के देखा तो उसमे "विकास"
खुद को अपने बचपन में पाया।