STORYMIRROR

Dayasagar Dharua

Abstract Tragedy

4  

Dayasagar Dharua

Abstract Tragedy

चूभन

चूभन

1 min
385

चुभता तो है

दिल के किसी कोने मे

धड़कनों को रोकता हुआ

साँसों मे वजन डालता हुआ

चुभता है

लकीरों को पढ़कर

किसी और की किस्मत की

और उसी किस्मत की लकीरों को

तौल कर

अपनी किस्मत की लकीरों के साथ

जहाँ सिर्फ अपनी ही लकीरें

घुटने टेक देते हैं

उन लकीरों के सामने

चुभता है

जब चुभने को

एक दाना नहीं मिल रहा होता

पानी मे भिगोया कपड़ा

पेट मे डाल कर

दो चार दिनों से

कटोरे मे रखा बासी चावल

खाकर गुजारा करना होता है

वहीं दूसरी ओर

बर्तनों के भाव

खाना फेंके जा रहे होते हैं

चुभता है

जब नौकरी केलिए

दरबदर भटकते फिरते हैं

एक कागज का टुकड़ा हाथ लिये

जिसे हमने

अपनी और अपनी माँ बाप की

कमाई जोड़कर कमाया था

बस कुछ हरी पत्तीयाँ

जमा करने थे

जो बूढी माँ की दबा दारू मे

खर्च हो गये

और हर बार की तरह

मेहनत हम करते हैं

पर नौकरी किसी और के हिस्से

में चली जाती

चुभता है

चुभता तो है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract