चतुर चंचला ने फिर छला
चतुर चंचला ने फिर छला
आज कुछ हास्य के रंग....
मोहिनी के बड़े मोहक से
मनभावन अंदाज़ देखकर ,
मोहित को मोह हो आया !
कुछ और करके थोड़ा और,
सरक कर और करीब आया!
मोहिनी बड़ा इतराकर बोली,
यह विशुद्ध प्रेम है या मोह है ?
क्या तुम मुझसे इतना प्रेम करते हो,
कि सह नहीं पाते पल भर का विछोह!
मोहित ने अब दार्शनिक अंदाज़ में कहा ,
अरे, मोहिनी,प्रेम भी तो मोह ही है ना...!
जो हमेशा मन को मोहता ही रहता है ,
और सदा अपने प्रेमी की बाट जोहता है !
चतुर चंचला मोहिनी किंचित मुस्कुराई ,
त्रियाचरित्र को पूरी तरह घोटकर थी आई!
अब प्रिया मोहित के और भी करीब आई !
मोहित ने सोचा,अपनी तो लॉटरी लग आई !
बड़ी कुशल और समझदार निकली मोहिनी ,
अगले ही पल उसके हाथ में थी सिंदूरदानी !
बोली, मेरे मोहन, मोह को प्रेम बनाओ ,
अब के आप बस मेरी मांग भर जाओ !