चट्टान
चट्टान


वो तिनके थे जो बिखर गए।
चट्टानों से यह उम्मीद न करना।
सीमा पर है तैनात।
अपनी सीमा में ही रहना।
रफ्तार न कभी कम होने देंगे।
रौंदकर ही बढें चाहे।
दीवार न तुम्हें बनने देंगे।
तुम लड़े थे पर फिर भी हम डंटे थे।
तुम्हारे हाल पर सभी तो हंसे थे।
माना कि कभी-कभार अंधेरा तुम कर देते हो।
सूरज को लेकिन फिजूल ही छलते हो।
खरपतवार से बढ़ रहे हो तो
लो खरपतवार ही मिटा देते हैं।
तुम्हारे हर प्रयास को
 
;नाकाम बना देते हैं।
हर कार्य तुम्हारे विचित्र है।
यह कैसा तुम्हारा चरित्र है।
हैरानी होती है देखकर,
तुम्हारा ऊलजलूल मकसद।
हम भी तो बढ़ रहे हैं देखो
रखकर बेपनाह मोहब्बत।
हवन की हर बार आहुति क्यों बनते हो।
अपने काम से काम क्यों नहीं रखते हो।
रफ्तार तो सबकी बढ़ी है ।
लेकिन तुम्हारी क्यों दोहरे मापदंडों पर खड़ी है।
रेत पर घर बन नहीं सकते और
तुम हो कि देश चलाना चाहते हो।
क्यों कर विनाश का तांडव चाहते हो।