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Praveen Gola

Romance

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Praveen Gola

Romance

चंचल मन

चंचल मन

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चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।

गली - गली ढूंढे उसे दीवानी,

लिखने को एक नई कहानी,


चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।

रातों को जाग उसे ताँका था,

धीरे-धीरे दिल में उसके झाँका था,

चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।


बातों में उसकी ऐसी गर्मी है,

पिघली बदन की सारी चर्बी है,

चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।


नींद में भी उसको जब पुकारा था,

ज़िस्म हरकतों से ऐसा हारा था,

चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।


आज पास गर वो मेरे आ जाए,

कसम से फिर वो नशा छा जाए,

चंचल मन काहे शोर करे ?

उसकी बातों की ओर चले।


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