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manoj tandon

Abstract

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manoj tandon

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चलो कुछ गुमशुदा सपने ढूढते हैं

चलो कुछ गुमशुदा सपने ढूढते हैं

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जिम्मेदारियों और हकीकतों की भीड़ में ,

कुछ गुमशुदा सपने ढूंढ़ते हैं

आजकल हम अपनो में,

कुछ अपने ढूंढ़ते हैं,

जिंदगी की दौड़ में , जो कांरवा पीछे छोड़ आए ,

हम आज उनकी दास्तां ढूंढ़ते हैं,

कई अधूरी हसरतों भरी इस जिंदगी में,

चलो कुछ गुमशुदा सपने ढूंढ़ते हैं,

ख़यालो में ही सही , फिर से कुछ अपने ढूंढते है ...

ऐसी तरक्की भी किस काम की, कि अपने वजूद से हम इतना आगे निकल आए ,

आजकल हम अपने में ही , अपने कुछ भुले बिसरे निशा‌, ढूंढ़ते हैं!


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