खोल दे पंख
खोल दे पंख
क़ुव्वत कहां आजमाई है,, सफर अभी तो बहुत बाकी है ,
फैला दे पंख , कहता है मन का परिंदा, अभी तो कई उड़ाने बाकी है,
जमीं पे नहीं है मंजिल तेरी, पूरा असमा अभी बाकी है.,
समन्दर की अगोशी को लहरों की बेबसी मत समझ ,
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतने तूफ़ान दिखाना अभी बाकी है,
कुछ अंदाज ही दिखाए है ,असली आगाज़ तो अभो बाकी है,
खोल दे पंख , कहता है मन का परिंदा, अभी आसमान को आजमाना बाकी है ।