ए जिंदगी
ए जिंदगी
आसमां की बुलंदियों को छूने की ख्वाइश तो बहुत थी ,
पर दूसरो के कंधे पे चढ़ने का हुनर जिंदगी सिखा ना पाई ,
हमसे कभी पूरी न हुई तालीम तेरी ऐ ज़िन्दगी,
शागिर्द बनना मंजूर नहीं, और उस्ताद बनना तू सिखा ना पाई,
अब क्या करूं तुझसे गिले शिकवे ए जिंदगी ,
कुछ हम ना कर पाए , कुछ तू ना कर पाई।
