चले हैं व्यंग्य प्रबंध काव्य
चले हैं व्यंग्य प्रबंध काव्य
लिखे छंद हिय में बसाकर चले हैं।
जिसे गीतिका हम बनाकर चले हैं।।
गजल है नही ये सरल भाष्य हिन्दी।
यही छंद हिन्दी सजाकर चले हैं।।
जिसे जानते है, विरल शब्द सागर।
वही ज्ञान मंथन, कराकर चले हैं।।
सहज है सरल है मृदुल भाष हिन्दी।
सही साज संस्कृति, बनाकर चले हैं।।
