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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Abstract

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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चिट्ठियां

चिट्ठियां

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चिट्ठियाँ आती तो हैं 

पर पहले जितनी नहीं 

लेकिन मिलने पर 

होती है खुशी 

पहले से ज्यादा।


चिट्ठियां अजर - अमर हैं 

एक बार पढने पर 

स्वत: ह्रदय में हो जाती हैं कॉपी 

फेसबुक / व्हॉटसेप / ईमेल / एस. एम. एस. 

से प्राप्त संदेश 

कितनों को याद रहता है 

एक तरफ पढते जाते हैं 

तो दूसरी ओर भूलते जाते हैं।


कोई नहीं पढ़ता 

धड़कते दिल से ईमेल या एस. एम. एस. 

नहीं होती कोई खुशी 

संदेश प्राप्ति की 

आज भी अगर मिल जाये 

स्वयं के नाम से 

सिर्फ पचास पैसे का पोस्टकार्ड 

लोग चूम लेते हैं।

 

इस तरह 

जैसे वर्षों बाद मिला हो 

बचपन वाला प्यार 

चिट्ठियां आज भी आती हैं 

पर पहले जितनी नहीं।


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