Abhishek Singh

Tragedy

4.9  

Abhishek Singh

Tragedy

छपाक

छपाक

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क़सूर था बस मेरा इतना,

थाम अरमानो की डोर हवा में उड़ते रहना।

पापा की परी बन,

ताज सम्मान का बचाए रखना।


या फिर साथ तुम्हारे,

हाथों में हाथ डाल घूमते जाना।

क़सूर था बस मेरा इतना,

तुमसे अपना हाथ छुड़ाना।


लिया प्रतिकार फेंक छपाक से,

चेहरे को तेज़ाब से जला के जाना।

यही थी मोहब्बत या थी लालसा,

इश्क़ की आड़ में मुझको पाना।


हुस्न था मेरी पहली पसंद,

बदले दिल में दी दस्तक नहीं।

आ..थू है तुझपे ऐ पुरुष,

पुरुषार्थ अब तुझमें जीवित नहीं।


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