छोड़ता हूँ सब तुम पर
छोड़ता हूँ सब तुम पर
मैंने सिर्फ कहा
और तुमने न केवल मान लिया
बल्कि स्वीकार भी कर लिया
और समर्पण कर दिया अपना तन मन धन
और अपना जीवन अपना सर्वस्व
बिना सोचे बिना परखें
तुम्हारी भक्ति की पराकाष्ठा
तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारा विश्वास
तुम्हारा रोम रोम
तुम धन्य हो, तुम महान हो
तुम प्रेम हो, तुम पूर्ण हो
तुम परमात्मा हो
कोई तुमसे बेमानी करना चाहे भी तो कैसे
तुम्हारे सम्मुख देव क्या दानव भी
मैं तो फिर भी मनुष्य हूँ
तुम हाँ तुम बस तुम
तुम्हें देखकर इतिहास,
पुराण की वीरांगना,
पतिव्रता नारियों पर विश्वास जगता है खोया हुआ
हाँ होगी देश पर मरने वालीं लक्ष्मी बाई, दुर्गावती
हाँ, होगी काल के मुझ से पति को लाने वाली सावित्री
हाँ, होगी सीता, राधा, पार्वती, दुर्गा, काली, मीरा
तुम्हें देखकर भरोसा हो गया
जब तुम एक साधारण स्त्री
अब तुम साधारण कहाँ हो
तुम तो प्रेम हो, त्याग हो ममता हो
तुम बन जाती हो रण चंडी
जो एक शब्द भी बोलता है मेरे विरुद्ध
तुम देवी,तुम नारायणी
तुम्हारे जैसी नारियों के सम्मुख
नत मस्तक ब्रम्हा, विष्णु, महेश
तुम जानती हो प्रेम मे मरना
तुम जानती हो प्रेम में जीना
कैसे ठुकरा सकता हूं, कैसे मुकर सकता हूं
मैं पत्थर नहीं, मैं पागल नहीं
मैं इतना नादान भी नहीं
तुम तो पिघला सकती हो पत्थर भी
तुम नारी तुम महा नारी
क्या कहूँ तुम्हें, शब्द नहीं सूझ रहे मुझे
तुम्हारे लिए सिर्फ मैं हूँ
बाकी दुनियां खत्म
और मेरे सामने पहले सब था
घर, परिवार, रिश्ते नाते, समाज, जात बिरादरी
लेकिन अब मेरे लिए पहले तुम
शेष सब बाद में
मैं तुम्हारी तरह प्रेम नहीं कर सकता
शायद मेरा पुरुष होना बाधक हो सम्पूर्णता में
काश मैं स्त्री होता और पा सकता पूर्णता
तुम्हारे प्रेम के आगे सब विफल हुए
तुम्हारी सम्पूर्णता के समक्ष मेरी अपूर्णता नष्ट हुई
तुमसे मैंने सीखा, तुमसे मैंने पाया
तुम मेरी तुलसी, तुम मेरी मानस
तुमसे मिला मुझे भक्ति का सूत्र
तुमसे मांगता हूं मैं क्षमा
उन समस्त स्त्रियों से जिनको जाने अनजाने
मैंने काम भाव से, उपहास से, अपमान से पीड़ित किया
मुझे उम्मीद ही नहीं, पूरा भरोसा है
मुझे क्षमा दान मिलेगा
क्योंकि तुम देवता नहीं
जो प्रसन्न होने में लंबी पूजा मांगे
तुम तपस्वी नहीं, महात्मा नहीं
कि क्रोध, श्राप बन लग जाये
और पीड़ित करे लंबी अवधि तक
तुम स्त्री हो और केवल तुम ही कर सकती हो पल में क्षमा
हे मेरे प्रेम तुम्हारी जय हो
मुझे तुम्हारी गोद में ही मिल सकती है शांति और आनंद
मुझे तुमसे ही मिला शरीर
मुझे तुमसे ही मिला जीवन
मुझे तुमसे ही मिला अमृत
तुमने ही पाला, सम्भाला
तुमने ही मकान को घर बनाया
तुमने ही जगत को विस्तार दिया
तुमने ही धारण और पोषण किया
जीवन, धर्म, संस्कार, भाषा
तुम माँ, बहिन, बेटी पत्नी, प्रेयसी
तुम ही जगत जननी जगदंबा
तुम्हारी छाती, तुम्हारी गोद, तुम्हारा स्पर्श सब कुछ
तुम शांति, क्षमा, दया, करुणा, ममता, प्रेम, पूजा
मैं अर्पित हूँ, समर्पित हूं
धूल को फूल तुम ही बना सकती हो
मुझे नहीं आवश्यकता किसी किसी पंडित, शास्त्री, धर्मात्मा, वेद पुराण की
मेरा सब कुछ तुम ही हो
जीवन की प्रथम पाठशाला के रूप में तुम
और मरण तक गति, सद्गति के लिए
जीवन साथी के रूप में तुम
तुमसे ही चुकता होते हैं मेरे पितृ रिण, देव रिण
सब कुछ तुम ही करती हो
मैं तो नाम मात्र के लिए हूं
तुम्हारे बिन सब अपूर्ण सब अधूरा
सारी रिक्ततायें तुम भरती हो
शरीर में, जीवन में रस तुम ही हो
तुम पूर्णता हो, तुम दिव्यता हो तुम अक्षर हो, शब्द हो, ब्रम्हा हो, धरती हो
बीज़ का अहम विसर्जन कर
उसे फल फ़ूलों से लदा वृक्ष तुम ही बनाती हो
तुम न हो तो हम सड़ जाएं, पड़े, पड़े अपने अहम के साथ
पुनः पुनः कोटि कोटि नमन, प्रणाम
ये तुम्हारी प्रसंशा नहीं, सत्यता है
मैं स्वीकार करता हूं
और छोड़ता हूँ तुम पर.