छंदमुक्त कविता
छंदमुक्त कविता
क्या कर सकेगा कोई गुणगान,
भारतीय संस्कृति सबसे महान,
विश्व की प्राचीनतम संस्कृति,
है ये तो कर्म प्रधान।
किंतने ही क्रूर काल के थपेड़े खाये,
पर, विजयी हो ये अमर रही,
कोई इसको मिटा न पाए,
जगतगुरु हमारी संस्कृति,
न केवल भारत---
बाहर की भी जंगली ,असभ्य जातियों को,
सभ्यता के पाठ पढ़ाये
उदारता, प्रेम, सहिष्णुता इसके लक्ष्य,
लक्ष्य से इसको डिगा न पाए,
देव मान के नदियों, पीपल, वट के,
इस संस्कृति ने गुण हैं गाये।
शताब्दियों से गीता, उपनिषद के उपदेश,
हैं हमको राह दिखाते--
पथ भटके तो राह पे लाते,
चिंतन प्रणाली ज्ञान का आधार,
कैसे पायेगा कोई इससे पार।
आई कई संस्कृतियां और विलुप्त हुई,
ये सूर्य सम प्रखरता लिए चमकती जाए,
कभी न छोड़ें, इसका दामन,
सम्पूर्ण विश्व मे विस्तारित करते जाएं,
हम भी अपना कर्म निभाएं।