छलिया सपने
छलिया सपने
मेरे सपने मुझे सताते हैं ,
सारी-सारी रात जगाते हैं ,
नींद नहीं नयनों में ,
आते हुए सपने ,न जाने कहाँ?
नयनों में ही छिप जाते हैं II
जग की नीरसता के आगे ,
सब कुछ फीका पड़ जाता है ,
बीती यादों में कुछ अतीत की
परछाई छा जाती है ,
मन तक आते -आते ,
क्यों सपने पीछे रह जाते हैं II
कब पूरे होंगे सपने ,
सपने बनकर ही रह जाते हैं ,
नींद नहीं नयनों में ,
आते हुए सपने ,न जाने कहाँ?
नयनों में ही छिप जाते हैं II
पतझड़ बसंत का है अंतिम ,
सौरभ सदा लुटाते हैं ,
नीरवता के परदों से भी ,
राग निकल ही आते हैं ,
मेरे सपने मुझे सताते हैं ,
सारी-सारी रात जगाते हैं II