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सोनी गुप्ता

Abstract

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सोनी गुप्ता

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छलिया सपने

छलिया सपने

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मेरे सपने मुझे सताते हैं ,

सारी-सारी रात जगाते हैं ,

नींद नहीं नयनों में ,

आते हुए सपने ,न जाने कहाँ?

नयनों में ही छिप जाते हैं II


जग की नीरसता के आगे ,

सब कुछ फीका पड़ जाता है ,

बीती यादों में कुछ अतीत की

परछाई छा जाती है ,

मन तक आते -आते ,

क्यों सपने पीछे रह जाते हैं II


कब पूरे होंगे सपने ,

सपने बनकर ही रह जाते हैं ,

नींद नहीं नयनों में ,

आते हुए सपने ,न जाने कहाँ?

नयनों में ही छिप जाते हैं II


पतझड़ बसंत का है अंतिम ,

सौरभ सदा लुटाते हैं ,

नीरवता के परदों से भी ,

राग निकल ही आते हैं ,

मेरे सपने मुझे सताते हैं ,

सारी-सारी रात जगाते हैं II






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