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Preeti Rathore

Abstract

3  

Preeti Rathore

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चाय की साजिश

चाय की साजिश

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यूं इत्तेफाक से कौन टकराता है जनाब,

कुछ तो इस चाय की साजिश रही होगी...

यूं फिकी चाय कौन पीता है जनाब,

कुछ तो मिठास चाय बनाने वाली के

हाथो मे रही होगी..

यूं बार बार चाय कौन पीता है जनाब,

कुछ तो यादे उन खास पलो की रही होगी..

यूं खामोशी से चाय कौन पीता है जनाब,

कुछ तो किस्से कहानियां मजेदार रही होगी..

यूं कडक चाय कौन पीता है जनाब,

कुछ तो कसक उन दो पलो की जिदंगी की रही होगी..

यूं आँख बंद करके चाय कौन पीता है जनाब,

कुछ तो गहराई उन आँखो मे रही होगी..

यूं अतीत के पन्नो को कौन खोलता है जनाब,

कुछ तो खुमारी उन दिनो की रही होगी..

यूं मुस्कुराहट कौन लाता है जनाब,

कुछ तो हसीन बात उन मुलाकातो मे रही होगी..

यूं बेपनाह इश्क कौन करता है जनाब,

कुछ तो बात उनकी सादगी मे रही होगी..

यूं अचानक कौन बदलता है जनाब,

कुछ तो नये रिश्ते की आहट रही होगी..

यूं बारिश से कौन बैचेन होता है जनाब,

कुछ तो नजदीकियां उस सावन मे रही होगी..

यूं अजनबी को देखकर खुश कौन होता है जनाब,

कुछ तो अपनेपन की कशिश उन निगाहो मे रही होगी..

यूं दोनो हाथ से कसकर कौन कप पकडता है जनाब,

कुछ तो दुरियां मिटाने की ख्वाहिश

इस मुलाकात मे रही होगी..

यूं इत्तेफाक से कौन टकराता है जनाब,

कुछ तो इस चाय की साजिश रही होगी...



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