चार दिन की जिंदगी
चार दिन की जिंदगी
बारिश की बूंदों जैसे
मै आया इस संसार में
झूमता खेलता बचपन बीता
माँ बाप के प्यार में।
सुहाने थे वो बचपन के दिन
बाल मन और था शुद्ध चिंतन
ना ही थी भविष्य की चिंता
ना ही छुना था गगन।
आँगन में खेले बचपन के दिन
समय के साथ सब बीत गए
भाई बहन अपनों से बिछड़े
और मिल गए साथी नए।
समय की दौड़ में आगे बढ़ने को
हम सब मजबूर हुए।
आने वाले कल की चिंता में
हम अपने रिश्तों से दूर हुए।
सफलता की सीढ़ियों पे चढ़ने को
हमने जी जान लगा डाला
पता नही था इसका फल का
अपना बहुमूल्य समय गंवा डाला।
जवानी को बर्बाद किया
सबसे आगे रहने को
बिना बाँध की नदियों जैसे
उच्छलता से बहने को।
चार दिन की जिंदगी
उसमे तीन दिन बर्बाद किये
अन्त समय में समझ आया
आनंदमय जीवन कैसे जियें।
जीवन के उन चंद पलों को
फिर से जीना चाहता हूँ
बचपन के उस मधुर संगीत को
अपनी धुन में गाता हूँ।
धन-दौलत से मिल सके तो
बचपन अपना खरीद लूँ
भाई बहन से प्यार करुँ मैं
माँ के आँचल में सो लूँ।
