चांदनी रातें
चांदनी रातें
चांदनी रातें वे मुलाकातें,
बीत जातीं करते ही बातें।
चांदनी चार दिन की होती,
फिर अंधेरी रात यों सोती।
जीवन भी कुछ ऐसा ही है,
जगत का खेल पैसा ही है।
चांदनी कुछ देती है सीख,
अंधेरे-उजाले जग की लीक।
कभी घटता कभी बढ़ता,
कभी बदली में कुछ दबता।
जीवन में सुख-दुख रिश्ता,
लहरों सा ये उठता-गिरता।
कोई चांदनी देख है हरषता,
तो कोई विरह से झुलसता।
मैं चांद की चांदनी हूं स्मिता,
मुझ में सबके लिए तरलता।