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Dr.Shilpi Srivastava

Abstract

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Dr.Shilpi Srivastava

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चाँद

चाँद

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हर धड़कन की आस हो तुम,

अंधकार में प्रकाश हो तुम,

'ऐ चाँद' तेरा क्या मजहब है?

कहीं रजनीश तो कहीं महताब हो तुम,

         चाँदनी की चमक को समेटे हुए,

         अरमानों की चादर लपेटे हुए,

         हर खुशी में तुम्हारा ही दीदार हो,

         कहीं मिलन तो कहीं इंतजार हो तुम,

था बचपन तुम्हारी ही आग़ोश में,

थे 'मामा' बने तुम बड़े जोश में,

हर कहानी में छिप करके बैठे थे यूँ,

लगता था कितने ही पास हो तुम,

          यूँ रहना हमेशा चमकते हुए,

          हर किसी के सपने संजोते हुए,

          जीवन के हर मोड़, हर राह पर,

          आशा की जलती मशाल हो तुम।


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