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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

चांद सी सुंदर

चांद सी सुंदर

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प्रिये,

तुम चांद सी सुंदर 

चांदनी सी धवल 

गुलमोहर सी खूबसूरत

अमलतास सी मनमोहक हो। 


रातरानी की तरह महकती हो 

चिड़िया सी फुदकती हो 

शरबती आंखों से जब जाम पिलाती हो 

तो दिल को मदहोश बना देती हो। 

सुर्ख गुलाब से कोमल होठों को 

थोड़ा तिरछा करके जब मुस्कुराती हो 

कसम से, मधुबाला को भी मात कर जाती हो 

काली नागिन सी लटों को 

जब कंधों पर बिखराती हो 

तो दिन को रात कर जाती हो।


गोरी बांहों की जयमाल जब 

मेरे गले में डालती हो 

तो दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति

होने का अहसास करा जाती हो 

गंगा सी निर्मल , यमुना सी शीतल 

मंदाकिनी सी अल्हड़ लगती हो 

कभी कभी चंबल सी घुमावदार

सिंधु सी पहरेदार और 

ब्रह्मपुत्र सी असरदार नजर आती हो। 


घर को स्वर्ग बनाने वाली 

मेरे जीवन को महकाने वाली 

स्वयंत्रचालित सी काम करती हो 

तुम ही रंभा, तुम ही उर्वशी 

और तुम ही स्वर्ग की मेनका हो 

तुम्हारे बिन मैं अधूरा सा हूं 

तुम ही मेरी दुनिया, मेरी सब कुछ हो। 


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