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Ravindra Dhing

Tragedy

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Ravindra Dhing

Tragedy

चाँद के टुकड़े

चाँद के टुकड़े

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वो अल सुबह, चाँद के टुकड़े जुटाता है 

तब कहीं जा के वो स्कूल जा पाता है।।

वो अल सुबह… 


अदब-ए -ज़िन्दगी है ये कोई ऐब नहीं 

अपनी भूख छुपाने को वो गुटखा चबाता है।।

वो अल सुबह… 


जिस्म की बनावट कुछ और ही होगी उसकी 

जब कंधे बस्तों से थक जाते हैं वो घर का खर्च उठाता है।।

वो अल सुबह… 


कुनबे की परवरिश करता है जो हँस हँस कर

वो चाय की टपरियों पर अक्सर छोटू कहाता है।।

वो अल सुबह… 


उसे डर है कि कोई पूछ न ले हाल-ए -मुफलिसी उससे 

तब ही वो लाल पीले दाँत बेवजह सबको दिखता है।।

वो अल सुबह…



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