प्रेम मुझे इंसान बना दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो
पत्थर का एक बुत बस मैं हूँ
भाव शुन्य नीरस बस तन हूँ
मुझमें भाव नदी बहा दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो।
कहना चाहूँ पर सकुचाऊँ
अपने मन से मैं शरमाऊं
अनकही को तुम ही सुन लो
शब्दों की दीवार गिरा दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो।
हृदय की ऐसी तन्हाई मैं
व्योम की ऐसी परछाई मैं
कृष्ण पक्ष की रजनी मैं हूँ
तुम पूनम का चाँद खिला दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो ।
किसी कवि की अनमन कविता
वर्षा में भी रीती सरिता
रंगहीन रंगोली मैं हूँ
तुम जीवन के रंग छिड़क दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो ।
याद में उनकी झूल रहा हूँ
खुद ही खुद को भूल रहा हूँ
विरह वेद की अग्नि मैं हूँ
तुम बस मुझको उनसे मिला दो
प्रेम मुझे इंसान बना दो।